धान की प्रमुख बीमारियों और उनके प्रबंधन पर केंद्रित है। भारत में धान की खेती व्यापक है, लेकिन कम उपज छोटी जोतों, श्रम की कमी और जैविक/अजैविक तत्वों से प्रभावित है।

मुख्य बीमारियों में शामिल हैं:
झौंका रोग (Magnaporthe grisea): पत्तियों और पुष्पगुच्छ पर भूरे-लाल धब्बे बनते हैं, जिससे पौधे जलकर दिखते हैं और उपज कम होती है। नियंत्रण के लिए बीज का चयन, रोगी अवशेषों का विनाश, बीज उपचार (थिरम या कार्बेंडाज़िम), और कार्बेंडाज़िम, ट्राइसाइक्लाज़ोल, हेक्साकोनाज़ोल, या प्रोपिकोनाज़ोल का छिड़काव किया जाता है।
पर्ण झुलसा/शीथ झुलसा (Rhizoctonia solani): नर्सरी से ही पौधे सड़ने लगते हैं, और पत्तियों पर अनियमित आकार के गहरे भूरे धब्बे बनते हैं। यह उच्च उत्पादकता वाली किस्मों में 50% तक नुकसान कर सकता है। प्रबंधन में बीज उपचार (Pseudomonas fluorescens या Trichoderma), और कार्बेंडाज़िम, प्रोपिकोनाज़ोल, या हेक्साकोनाज़ोल का छिड़काव शामिल है। फसल अवशेषों और खरपतवारों का नियंत्रण भी आवश्यक है।
भूरा धब्बा रोग: पत्तियों और दानों पर कत्थई रंग के धब्बे बनते हैं। नियंत्रण के लिए मैंकोजेब का छिड़काव किया जाता है।
जीवाणुधारी झुलसा (Xanthomonas oryzae pv. oryzae): पत्तियों पर कत्थई रंग की धारियां बनती हैं। प्रबंधन में रोग प्रतिरोधी किस्मों का चुनाव, एग्रीमाइसीन या सेरेसान से बीज उपचार, और Pseudomonas fluorescens से बीज और पौध उपचार, साथ ही स्ट्रेप्टोसायक्लिन और कॉपर ऑक्सीक्लोराइड का छिड़काव शामिल है।
मिथ्या कंडुआ: दानों पर मखमली जैसे हरे रंग के समूह बनते हैं। नियंत्रण के लिए प्रोपिकोनाज़ोल या नाटिबों का छिड़काव किया जाता है।
सफेदा रोग (लोहे की कमी): पत्तियां सफेद हो जाती हैं। नियंत्रण के लिए फेरस सल्फेट, यूरिया और बुझे हुए चूने का छिड़काव किया जाता है।
खैरा रोग (जिंक की कमी): पत्तियां पीली पड़ जाती हैं और बाद में कत्थई रंग के धब्बे बन जाते हैं। नियंत्रण के लिए बुवाई से पहले जिंक सल्फेट का प्रयोग किया जाता है। दिखाई देने पर जिंक सल्फेट, यूरिया और बुझे हुए चूने का छिड़काव किया जाता है।
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