रायगढ़/खरसिया |जहाँ एक ओर आधुनिक जीवन की दौड़ में इंसान संवेदनाओं से दूर होता जा रहा है, वहीं खरसिया में कुछ लोगों ने यह साबित कर दिया कि मानवता आज भी जीवित है। तमनार क्षेत्र के मुख्य चौक पर बीते सात दिनों से तड़पती एक घायल गौमाता और उसकी नवजात बछिया की संवेदनात्मक कहानी अब पूरे क्षेत्र में चर्चा का विषय बनी हुई है।

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🔹 सात दिनों की पीड़ा, फिर उम्मीद की किरण
जानकारी के अनुसार, तमनार मुख्य चौक पर एक गौमाता को तेज रफ्तार डंपर ने टक्कर मार दी थी। हादसे में उसका कुल्हा (हिप बोन) टूट गया, जिससे वह उठ-चल नहीं पा रही थी। लगातार बारिश और धूप के बीच मां वहीं सड़क किनारे पड़ी रही।
स्थानीय समाजसेवी गोपाल गुप्ता ने जब यह दृश्य देखा, तो उन्होंने स्वयं पहल करते हुए गौमाता का इलाज शुरू कराया। उन्होंने सात दिनों तक रोज़ाना पशु चिकित्सक से संपर्क बनाए रखा, दवा और भोजन की व्यवस्था की।
छठे दिन, सभी को चौंकाते हुए, उस घायल गौमाता ने एक स्वस्थ बछिया को जन्म दिया। लेकिन दिक्कत यह थी कि मां स्वयं खड़ी नहीं हो पा रही थी, जिससे बछिया को दूध पिलाना संभव नहीं था।
🔹 खरसिया गौसेवकों की तत्परता
इसी बीच खरसिया के जाने-माने गौसेवक राकेश केशरवानी ने सोशल मीडिया के माध्यम से इस घटना के बारे में जाना। उन्होंने तुरंत गोपाल गुप्ता से संपर्क किया और आग्रह किया कि दोनों — मां और बछिया — को खरसिया गौधाम भेजा जाए, जहाँ बेहतर देखभाल और मशीन की मदद से उपचार संभव है।
तमनार के ग्रामीणों और समाजसेवकों की मदद से घायल गौमाता और उसकी नवजात बछिया को वाहन के जरिए खरसिया गौधाम लाया गया।
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🔹 भावनाओं से भरा क्षण
गौधाम में पहुँचते ही गौसेवकों ने मशीन की सहायता से गौमाता को खड़ा किया। जैसे ही वह खड़ी हुई, नवजात बछिया ने पहली बार अपनी मां का दूध पिया। यह दृश्य देख वहां मौजूद सभी की आंखें नम हो गईं। किसी ने चुपचाप हाथ जोड़कर प्रणाम किया तो कोई भावुक होकर रो पड़ा।
इस पल ने यह एहसास कराया कि “सेवा केवल मनुष्यों की नहीं, बल्कि मूक प्राणियों की भी उतनी ही आवश्यक है।”
🔹 फिलहाल दोनों सुरक्षित
फिलहाल गौमाता और बछिया दोनों ही खरसिया गौधाम में सुरक्षित हैं। वहां के गौसेवक निरंतर उनकी देखभाल कर रहे हैं। पशु चिकित्सक के अनुसार, गौमाता की हड्डी धीरे-धीरे ठीक हो रही है और आने वाले दिनों में वह सामान्य रूप से चल-फिर सकेगी।
🔹 समाज के लिए प्रेरणा
यह घटना पूरे रायगढ़ क्षेत्र के लिए एक प्रेरणास्रोत बन गई है। जहाँ एक ओर लोग दुर्घटनाओं को देखकर भी अनदेखा कर देते हैं, वहीं गोपाल गुप्ता और राकेश केशरवानी जैसे गौसेवकों ने यह साबित किया कि इंसानियत अभी भी ज़िंदा है।
उनकी संवेदनशीलता ने न केवल दो जीवों की जान बचाई, बल्कि यह संदेश भी दिया कि करुणा और सेवा ही सच्ची पूजा है।
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