रायगढ़। रायगढ़ जिले से एक महत्वपूर्ण सरकारी आदेश सामने आया है, जिसने आदिवासी समाज में गहरी चर्चा पैदा कर दी है।

जिला कार्यालय (आदिवासी विकास) रायगढ़ द्वारा दिनांक 28 अक्टूबर 2025 को जारी पत्र क्रमांक 5622/कर्मा महोत्सव/आ.वि./2025-26 के माध्यम से यह सूचना दी गई है कि कर्मा महोत्सव 2025 के आयोजन को आगामी आदेश तक तत्काल प्रभाव से स्थगित किया जाता है।
यह आदेश सहायक आयुक्त, आदिवासी विकास रायगढ़ (छ.ग.) द्वारा जारी किया गया है। पत्र में उल्लेख है कि यह निर्णय शासन से प्राप्त निर्देशों के अनुपालन में लिया गया है। हालांकि, आदेश में स्थगन का कोई कारण स्पष्ट रूप से नहीं बताया गया है।
कर्मा महोत्सव – संस्कृति और अस्मिता का पर्व :
कर्मा महोत्सव छत्तीसगढ़ सहित समूचे मध्य भारत के आदिवासी समुदायों का एक प्रमुख पारंपरिक उत्सव है, जो प्रकृति, भूमि, जल और वन की उपासना से जुड़ा हुआ है। यह केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि सांस्कृतिक एकता, पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक समरसता का प्रतीक है।
ऐसे में, इसके स्थगन की सूचना ने आदिवासी समाज में असमंजस और चिंता का वातावरण उत्पन्न कर दिया है। कई सामाजिक संगठनों और जनप्रतिनिधियों ने यह प्रश्न उठाया है कि क्या अब पारंपरिक और सांस्कृतिक पर्वों के आयोजन भी प्रशासनिक स्वीकृति पर निर्भर होंगे?
स्थगन का कारण अस्पष्ट, प्रशासन से स्पष्टता की अपेक्षा : स्थानीय बुद्धिजीवियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि यदि स्थगन के पीछे कोई विशेष कारण या सुरक्षा संबंधी परिस्थिति है, तो शासन-प्रशासन को इसे स्पष्ट रूप से सामने लाना चाहिए।
लोकतांत्रिक व्यवस्था में पारदर्शिता और संवाद ही विश्वास का आधार होते हैं।
ऐसे निर्णय, जो सीधे तौर पर समुदाय की सांस्कृतिक भावनाओं से जुड़े हों, उन्हें जनसहभागिता और संवेदनशीलता के साथ लिया जाना चाहिए।
शासन की भूमिका पर उठे सवाल :
* राज्य सरकार की ओर से अब तक इस विषय पर कोई औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं दी गई है। इससे जनमानस में कई प्रश्न उठ रहे हैं –
* क्या यह निर्णय किसी विशेष परिस्थिति में लिया गया है, या यह एक नीति-स्तरीय परिवर्तन का संकेत है?
* क्या शासन-प्रशासन भविष्य में ऐसे पारंपरिक आयोजनों के स्वरूप और समय पर भी नियंत्रण करेगा?
* और सबसे महत्वपूर्ण -क्या आदिवासी समाज की सांस्कृतिक परंपराएं अब सरकारी अनुमति पर निर्भर रहेंगी?
संवेदनशील विषय पर संवाद की आवश्यकता : आदिवासी समाज छत्तीसगढ़ की आत्मा है, और कर्मा महोत्सव जैसी परंपराएं उसकी पहचान का मूल आधार हैं। ऐसे में, शासन-प्रशासन को चाहिए कि इस विषय पर व्यापक संवाद स्थापित करे, ताकि सांस्कृतिक विश्वास और प्रशासनिक व्यवस्था के बीच संतुलन बना रहे।
संस्कृति पर विराम नहीं, संवाद जरूरी है – क्योंकि जब परंपरा थमती है, तो पहचान भी मुरझाने लगती है।
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