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लैलूंगा। तहसील लैलूंगा में दस्तावेज लेखकों की मनमानी और अवैध उगाही ने आमजनों का जीना मुश्किल कर दिया है। शासन द्वारा सुशासन की दिशा में लगातार प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन तहसील कार्यालयों की हकीकत बिल्कुल उलटी है। आय, जाति, निवास या अन्य राजस्व प्रकरण के दस्तावेज तैयार कराने आए आवेदकों से निर्धारित दर से कई गुना राशि वसूली जा रही है।

राज्य की भाजपा सरकार और विशेषकर लैलूंगा विधायक व मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय लगातार भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने और सुशासन स्थापित करने का दावा करते हैं। जनसमस्या निवारण शिविर, राजस्व पखवाड़ा, सुशासन दिवस जैसे विशेष अभियान चलाकर आम नागरिकों को राहत पहुंचाने की कवायद भी होती है। इन अभियानों के दौरान वाकई लोगों को दस्तावेज और नकल बिना किसी अवैध शुल्क के उपलब्ध कराए जाते हैं। मगर जैसे ही यह शिविर और अभियान खत्म होते हैं, स्थिति फिर जस की तस हो जाती है।
100 से 500 रुपये तक वसूली
सूत्रों के अनुसार तहसील लैलूंगा में दस्तावेज लेखक आय, जाति और निवास प्रमाणपत्र के आवेदन व अन्य प्रकरणों के लिए निर्धारित शुल्क से कई गुना वसूली कर रहे हैं। जहां एक पेज पर नाममात्र की फीस होनी चाहिए, वहां लोगों से 100 से 500 रुपये तक की रकम वसूल की जा रही है। निर्धारित दर की सूची तहसील कार्यालय में चस्पा नहीं होने से आवेदक ठगी का शिकार हो रहे हैं।
आवेदकों की मजबूरी
आवेदन जमा करने और तात्कालिक दस्तावेज की जरूरत के चलते आमजन इन मनमाने शुल्क को चुकाने को मजबूर हो जाते हैं। खासकर ग्रामीण अंचल से आए लोग, जिन्हें शासन की दरें और नियमों की जानकारी नहीं होती, वे आसानी से शिकार बन जाते हैं। आलम यह है कि प्रकरण, नकल और आवेदन तक के लिए कई गुना रकम वसूली जा रही है।
तहसीलदार का बयान
इस पूरे मामले पर जब तहसीलदार से सवाल किया गया तो उन्होंने साफ कहा कि शासन द्वारा तय दर से ज्यादा कोई भी पंजीकृत दस्तावेज लेखक वसूली नहीं कर सकता। यदि किसी भी प्रकार की शिकायत मिलती है और जांच में यह सही पाई जाती है तो दोषी दस्तावेज लेखक पर कठोर कार्यवाही की जाएगी। यहां तक कि पंजीयन निरस्त करने तक की कार्यवाही की जा सकती है।
आमजन की मांग
जनता का कहना है कि तहसील कार्यालय में शासन द्वारा तय दरों की सूची स्पष्ट रूप से चस्पा की जाए ताकि हर कोई जानकारी रख सके। साथ ही अवैध उगाही करने वालों के खिलाफ तत्काल कार्यवाही हो। आमजन यह भी मांग कर रहे हैं कि सुशासन शिविर की तरह नियमित रूप से निगरानी तंत्र सक्रिय रहे, ताकि भ्रष्टाचार पर स्थायी लगाम लग सके।
लैलूंगा तहसील का यह मुद्दा अब धीरे-धीरे गरमाने लगा है। लोग सोशल मीडिया पर भी अपनी नाराजगी जता रहे हैं। ऐसे में देखना होगा कि प्रशासन अवैध उगाही के इस खेल पर कब और कैसे अंकुश लगाता है। यदि तत्काल सख्त कदम नहीं उठाए गए तो यह मुद्दा बड़े जनआंदोलन का रूप भी ले सकता है।
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