वट सावित्री पूजा को लेकर इस बार दो प्रकार का अभिमत बताया जा रहा है क्योंकि अमावस्या की शुरुआत 25 में की दोपहर 12:11 से हो रही है और समाप्ति दूसरे दिन मंगलवार को सुबह 8:30 को हो रही है इसलिए कुछ लोग सोमवार को इस व्रत को बता रहे हैं तो कुछ लोग उदया तिथि में अमावस्या होने पर मंगलवार को व्रत बता रहे हैं।

वट सावित्री व्रत केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं बल्कि स्त्री के प्रेम तब और साहस की प्रतीक कहानी है। सावित्री के अद्भुत धैर्य और दृढ़ संकल्प ने यमराज जैसे देवता को भी विवश कर दिया था। इस व्रत का आज भी वैवाहिक संबंधों में विश्वास समर्पण और स्नेहा को मजबूत करने का माध्यम बनता है मान्यता है कि सावित्री ने अपने पति सत्यवान की जान बचाई थी। वट सावित्री व्रत हिंदू संस्कृति में एक महत्त्वपूर्ण उत्सव है, जो मुख्य रूप से विवाहित महिलाओं द्वारा मनाया जाता है जो अपने पतियों और बच्चो की भलाई और दीर्घायु की कामना करती है। कहानी के अनुसार देवी, सावित्री इतनी समर्पित थी कि उन्होंने अपने पति सत्यवान के जीवन को बहाल करने के लिए भगवान यमराज को मना लिया। परिणामस्वरूप विवाहित महिलाएं वट सावित्री का सम्मान करती हैं,और अपने परिवार के लिए आशीर्वाद मांगती हैं। वट सवित्री व्रत के दौरान महिलाएं बरगद के पेड़ की पूजा करती है,जो तीन प्रमुख देवताओं – ब्रम्हा, विष्णु , महेश का प्रतीक है।
*जानिए क्या है पूजा का शुभ मुहूर्त*
अमावस्या तिथि प्रारंभ 26 मई को दोपहर 12:11 बजे।
अमावस्या तिथि समाप्त : 27 मई को सुबह 8:31 बजे
पूजा का श्रेष्ठ समय : 26 मई को दोपहर 12:11 बजे से 27 मई को सुबह 8:31 बजे तक
*पुजा की विधि*
*स्नान और संकल्प* : सुबह जल्दी उठ कर स्नान करें और व्रत का संकल्प लें।
*वट वृक्ष की पूजा* : वट वृक्ष के नीचे सावित्री,सत्यवान और यमराज की मूर्ति स्थापित करें।
*पूजन सामग्री* : जल, फूल,फल,धूप,मिठाई,कच्चा सूत(मौली) आदि।
*परिक्रमा* हैं: वट वृक्ष की 7,11या 21 बार परिक्रमा में मौली लपेटें।
*कथा श्रवण* : सावित्री सत्यवान की कथा श्रवण या पठान करें।
*व्रत समापन* : भीगा हुआ चना कुछ धन और वस्त्र अपनी सास को देकर कोंपल खाकर उपवास समाप्त करें।
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